कौन हू मैं , पहचानता नहीं अपने आपको!!!!
इस भीर भार कि दुनिया में दौड़ता हुआ,खोता हुआ मैं अपने आपको,
किसी चीज को पाने कि तल्लाश में,बस खोया रहा अपने आपको,
अब तो कोई बता दे कि कौन हू मैं,
क्योंकि पहचानता नहीं मैं अपने आपको....
किसी कि तलाश,किसी कि सुन्सुनाहत, बस सुनती हैं मेरी भावनाएं,
कोई तो है, जिसको पाने कि तलाश में ,खोता रहा मैं अपने आपको,
कोई तो तस्वीर,कोई तो निशानी दे जाओ,
कि आखिर किसकी तलाश में खोया रहा मैं अपने आपको,
लौट तो आओ, पहचान दे दो मेरी तुम,
क्योंकि खोता रहा मैं तेरी तल्लाश में अपने आपको,
कोई तो बता दे कि कौन हूँ मैं,
क्योंकि पहचानता नहीं मैं अपने आपको....
मैं पागल हूँ,क्या-क्या हूँ,क्या बन गया हूँ तेरी याद में,
रोता,बिलखता रहता ,गाता रहता ,बिना पहचाने तुझको,
कि अब तो एक झलक दिखा दे,कि कौन हैं तू जिसके लिए,
खोता रहा मैं अपने आपको,
रात बिरात सनसनी में तेरी आवाज मैं सुनता हू,
तू पास होकर भी दूर है,ये महसूस करता हूँ,
अब तो आ जाओ एक बार,कि देख लू मैं तुझको,
कि किसके लिए खोता रहा मैं अपने आपको,
कि अब कोई बता दे कौन हूँ मैं,
क्योंकि पहचानता नहीं मैं अपने आपको....
शायद जो तुने चाहा वो मुझको मिला हो,
मगर जो मैंने चाहा वो न मुझको मिला है,
इतना पाकर भी मैं क्यों अकेला हूँ,
तुम साथ नहीं हो मेरे शायद,
इसलिए तन्हाई ने मुझको घेरा है,
कोई ख़ुशी नहीं,कोई हसीं नहीं,कोई चाहत नहीं है,
जिंदगी में अब मेरी,
लौट के आ जाओ इस जिंदगी में एक बार तुम,
बस बता दो आखिरी बार तुम,
कि कौन हूँ मैं,
क्योंकि पहचानता नहीं मैं अपने आपको
पहचानता नहीं मैं अपने आपको!!!!!!!
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