Abhishek Maurya

Abhishek Maurya

Sunday, December 25, 2011

साक्षी की sorry....

मैं कहानियों का कोई सौदागर नहीं हूँ, जो आया और कुछ न कुछ लिख के चला गया, मैं तो बस आप के दिल की वो बात पड़ता हूँ, जो कभी-कभी आप किसी से कहते नहीं है,, मगर हमेशा से उसी बात को लेकर सोचते रहते है,, मेरी आज की भी कहानी उसी एक लड़की पर है जो हमेशा अपने दिल की बातें किसी को बताया नहीं करती थी और जिसको वजह से उसे क्या-क्या खोना पड़ा शायद ये उसको भी पता नहीं था,उसकी जिद्द ने उस से क्या क्या ले लिया, ये उसको तब एहसास हुआ जब वो उसके साथ न था....
                                        ये मेरी कल्पना की उमंग " साक्षी" की कहानी है, जो हमेशा अपने काम में मस्त, किसी से ज्यादा बातें नहीं करना, सड़क पे दायें-बायें नहीं देखना, एक रस्ते से आना और उसी रस्ते से वापस जाना था, उसका बस यही एक काम रह गया था, जिंदगी क्या होती है, इस से साक्षी को कोई मतलब नहीं था,, उसका तो बस ये मानना था की जिंदगी बस काम करने के लिए बने गयी है..मगर शायद वो ये नहीं जानती थी की भगवन हर इंसान को एक बार जिंदगी जीने का मौका जरुर देते है, और उसी की जिंदगी में भी वही एक ऐसा मौका आया जिसका शायद उसको नहीं, मगर उसकी जिंदगी को इन्तेजार था,
                            राह में चलते हुए, उसकी किसी से मुलाक़ात हुई, हाँ वो थोडा बदतमीज था, चस्मा हाथ में घुमाते हुए, मोबाइल की एअर्फोने अपने कान में लगाये हुए, न दुनिया की सोच , न किसी की सोच, बस अपने में लगा हुआ, वैसे भी आजकल दुनिया की सोच रखता कौन है,,और जब से मोबाइल फ़ोन का अविष्कार हो गया है , तब तप पुचो मत, लोगों के कानो से ऐसे चिपका रहता है जैसे लड़कियों के कानो से बालियाँ,  दरअसल वो अपनी इसी चाल में साक्षी से टकरा गया था, और आप साक्षी को तो जानते ही है, वैसे शांत, मगर जब कोई ऐसी हरकत करतब, राम -राम.!!!
         साक्षी का मन तो ऐसा किया जैसे की एक चपत लगेये उसके गालों पर, मगर वो सीधी-साधी बच्ची, कैसे लगाती.....मगर वो बस वहां से चली गयी, लड़का तमीजदार था तभी तो उसने सॉरी बोला, मगर साक्षी तब तक जा चुकी थी, पहली बार साक्षी की जिंदगी में कभी ऐसा हुआ होगा की वो ऐसे किसी अजनबी से टकराई थी, रात भर उस लड़के को गाली देती रही, कहती रही की आजकल के लड़कों को कोई तमीज ही नहीं, न चलने का तरीका पता है, न बात करने का तरीका पता है,आखिर पता है की कान में इयेर्फोने कैसे लगाये जाते हैं, और बस सुनाती रही रात भर,
                  फिर सुबह हुई और साक्षी की ये सुबह हमेशा की तरह वाली सुबह नहीं थी, उसने सोच के रखा था की अगर आज वो लड़का मिलता है तो वो आज उसको खूब खड़ी-खोटी सुनाएगी, ये तो मानना पड़ेगा की उस लड़के के आने से साक्षी के विचार बदल चुके थे, कहाँ की सीधी-सधी साक्षी , वो आज उस लड़के को सुनाने जा रही थी, और ऐसे लग रहा था की सारे भगवन शंक बजा रहे हो की अब युद्ध होने जा रहा है देखने आ जाओ, साक्षी बिलकुल तैयार , अपने शब्दों के बाण लेकर, और हुआ भी वाही, वो लड़का आया अपनी चाल में, वो ऐसे चल रहा था जैसे मानो Michael Jackson का बाप, जैसे ही साक्षी उस से  कुछ कहती की उसने साक्षी से सॉरी बोल दिया, ये सॉरी शब्द भी बड़ा अजीब है,  अच्छे खासे कट्टर  लोगों को मासूम बना देता हैं , और हुआ भी वैसा , साक्षी ने उस से कुछ नहीं बोला मानो उसके गुस्से का उबाल को किसी ने ठन्डे पानी से बुझा दिया हो, मगर साक्षी ने उस से कुछ नहीं बोला, और  हमेशा की तरह अपने रास्तें को चली गयी, मगर लड़के को अच्छा नहीं लगा,  वो रोज आता और साक्षी से सॉरी बोलता लेकिन , साक्षी थी की उस से कुछ नहीं कहती थी,,,
                                          ऐसा लगने लगा था की साक्षी को भी उसकी आदत पड़ने लगी थी, अब वो भी उस लड़के को खोजने लगी थी, और जब तक वो उस से सॉरी न बोल दे उसकी सुबह सुरु ही नहीं होती थी, एक बार साक्षी ने तो उस से गुस्से में  कह भी दिया की तुम जैसे लड़कों को मैं बहुत अच्छी  तरह से जानती हुईं , पहले सोरी फिर थैंक्यू फिर I like you फिर I love you, तुम लड़के न.....और बस शांत होकर चली गयी थी, मगर लड़का तो बस चुप्प.....
                उसने साक्षी से कुछ नहीं बोला मगर तब भी रोज उसे सॉरी कहता रहता था, और साक्षी कुछ नहीं बोलती  थी, ऐसे ही दिन गुजरते गए , और ये तो रोज के हालात बन गए  थे, लड़के का सॉरी बोलना  और साक्षी का चुप रहना , मगर मन ही मन साक्षी को ये सब  अच्छा  लगने लगा था,
                                             मगर एक दिन साक्षी को वो रास्ते में वो नहीं मिला, उसको बड़ा  अजीब लगा की वो लड़का आज क्यों नहीं आया है मेरे रस्ते में , आज उसने सॉरी नहीं बोला  आकार, कहीं उसको कुछ हुआ तो नहीं है, और इसी सोच में वो चलती रही, और परेशां रही, दरअसल साक्षी को उसकी आदत पद चुकी थी....
                     रोज उसको देखें की आदत, रोज उस से सॉरी सुनने की  आदत, रोज चुप रहने की आदत, रोज उसी रस्ते जाने की आदत, कभी-कभी  चुपी कुछ आपसे छीन  लेती है :


उनसे कुछ कहा न गया  मुझसे बेरुखी से भी कुछ,,,,
की आज तक खामोश बैठी हैं की कोई शब्द गलत न निकल जाये,,
और हम थे की सोचते रहे एक बात बस,,
की वो हमसे नाराज रहती है एक छोटी सी मुलाक़ात की बात पे बस....

एक महिना हो गया, की एक दम से साक्षी के दरवाजे पे खट-खट हुई,  कि साक्षी  ने दरवाजा खोला और देखा की एक लैटर आया है, साक्षी ने देखा खोल के, तो किसी रमेश का था ,वो किसी रमेश को नहीं जानती थी,  उसको कुछ समझ में नहीं आया, तो उसने पड़ना शुरू किया, उसमे लिखा था,:

मैं रमेश , शायद आप मेरा नाम नहीं जानती है, मगर मैं वो हुईं जो आप से गलती से टकराया था, और रोज माफ़ी मांगता रहता था, की मैं बस ये चाहता  था  की कोई भी मुझसे नाराज न हो, कोई भी  मेरी वजह से दुखी न हो, मैंने अपनी जिंदगी में बहुत गम देखे हैं , और मैं किसी से गलती से भी कोई  ऐसा काम नहीं करना चाहता की वो आपको तकलीफ  दे जाये,
                                     मैं बचपन से अनाथ था, लोगों ने मुझे ऐसी-ऐसी  गलियां सुनाई है  की  ये मैं ही जनता हुईं, कोई अनाथ कहता है, कोई  मजाक में ये पूछता था की ओये तेरे बाप का नाम क्या है, मैं इन तानो से नफरत करता था ,  मगर कुछ कहता नहीं था, उनकी बातों को अनसुना कर देता था, और मैंने पढाई  लिखी की, की मैं आज अपने पैडो पे काबिल खड़ा  हो सका हुईं, मगर आज भी वो गलियां मुझे याद आती है इसीलिए, मैं कानो में हमेशा एयेर्फोने लगा के रहता था, की अब मुझसे व् गलियां नहीं सुनी जाती, किसी ने कहा है की लोग तुमको तब कहना छोड़ देंगे जब तुम उनकी नहीं सुनो गे और ख़ुशी की तरह जिओगे, इसीलिए मैं हमेशा खुश रहने की कोशिश करता हुईं,मेरी भी जिंदगी  बिलकुल आपकी जैसी है, रोज अपने रास्तें से जाना , किसी से मतलब नहीं ,,मगर जब मैंने उस दिन आप को तकलीफ पहुचाई, तब मुझसे रहा नहीं गया, और आपसे माफ़ी मांगने आया, मगर आप मुझसे इतनी नाराज थी की आपने मुझे माफ नहीं किया,,
                            शायद इसीलिए भगवन मुझे इतनी बड़ी सजा दे रहा है, की इस अनाथ को अपना साया  दे रहा है, हाँ उस आखिरी दिन आप से माफ़ी मांगने के बाद जब मैं लौट रहा था, जैसे की मैं आपसे टकराया था वैसे किसी और से, मगर इस बार भी मेरी गलती नहीं थी, और इस बार उस गाड़ी वालें ने मुझको इश्वर से मिलवा दिया, , कहते हैं हर इन्सान की आखिरी इछा पूरी  की जाती है तो मैं आप से बस एक आखिरी इछा मांगना चाहता हुईं, की मुझे माफ़ कर दीजिये, मैं आपको उस दिन तकलीफ नहीं देना चाहता था, शायद जब तक ये ख़त आप तक पहुचे तब तक मैं इस दुनिया में न रहूँ  मगर मेरे माफ़ी जरुर रहेगी, तो इस बार मुझको इस दुनिया से आजाद कर दीजिये, और मुझे माफ़ कर दीजिये,
                                        रमेश का ख़त ख़तम हो चूका था, साक्षी आज फिर बाहर निकली , उन्ही गलियों में गयी, जहाँ वो रोज जाया करती थी, जहाँ वोरोज किसी  की माफ़ी सुनने को बेकरार रहा करती थी, आज उसकी अन्खोने में  आंसू थे, और वो उस अजनबी के लिए थे जीको साक्षी कभी जानती भी नहीं थी, और आज उसके आसूं   देख के, भगवन से भी शायद रहा न गया, और उसने भी अपने आंसूं  झलका दिए, साक्षी आज भीग रही थी, और आंसूं उसके आँखों से निकले जा रहे थे, और बस एक बात कही जा रही थी, की मैंने तुमको माफ़ कर दिया , मगर आज मुझे कौन माफ़ करेगा, ,,

किसी की दिल से इतना न खेलो ऐ- तस्लीम,
की पहले उसको तेरे से प्यार हो जाये,
फिर जब तू उसको इनकार करे,
तो उसका शारीर उसका न रह जाये....


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