Abhishek Maurya

Abhishek Maurya

Tuesday, December 20, 2011

ख़ामोशी.....

ख़ामोशी भी क्या पन्हा है,,जीने की भी इसको एक कला है,,
न जाने क्या किस मोड़ पे कह जाये,,बस इसको ये आता है ये फ़ना है..


मेरे पास पड़ी किताब की सोलवां पन्ना खुला है,,
माचिस की आधी तिल्ली का आज अपना एक नया अंदाज है,,
दीवारों के कान सुने थे हमने,,,वो भी आज कुछ सुनना चाहते हैं,,
दरवाजे की खटखटाहट होने से पहले कुछ बुदबुदा रही है,,
आज सबके अपने नए अंदाज है,,ये क्या किसी के आने की साजिश को राँझा रहे हैं,,
या ये आज फिर मुझको मेरे हिसाब से सल्फों की रहनुमा जिंदगी जिया रहे हैं......


तू दूर है,,या पास है, आज लगता है सिर्फ इसको ही पता है,,
तेरा नाम ख़ामोशी है,,ये तो मुझको पता है,,
फिर क्या ताक़त है तेरे अन्दर,जो तेरे आने से सब ही आज मेरे से रहनुमा है,,
तुने क्या जादू किया है,,की आसमान से आज चांदनी भी खफा है,,
न जाने क्यों तुझको आज अपना हमसफ़र बनाने की इल्तेजा है,,,
तुने आज पड़े हुए खामोश मजबुओं को आज फिर से एक साथ बुना है,,


न जाने खन-खन के किसी की पायल की आवाज की अलग सी बेला है,,
पंछियों की खुबसूरत फरफराहट की आज अलग सी खेला है,,
इस मौसम में इनके न होने से भी तुझमे क्या फन्ना है,,
की आज तू इन सबको भी जिस्मे- आज्बाँ करके मेरे सामने आज चुपचाप खड़ा है,,
तेर्रे जाने से ये जिंदगी रौनक तो नहीं होती,न आने से इसमें कोई फर्क पड़ता है,,
आज तू क्या है मेरी जिंदगी के लिए, ये आज बस नूरे- जज्बात हुआ है...


ये जिंदगी कुछ नहीं है तेरे बिना,,आज जिंदगी को गले लगा ले,,,
ऐ ख़ामोशी आज आ जा मिल के जिले उस जिंदगी को,,
क्योंकि अब तो हर ख़ुशी और गम में तुने ही मुझको छना है,,
जिंदगी खुश भी है तेरे साथ,,आज बदरंग भी है तेरे साथ,,
इसमें भी आज तेरा और मेरा अलग सा एक फन्ना है,,
किसी आईने को देख के मैंने तुझको अपना अक्स माना,,
ये ही बस मेरी एक दिल की सची ख़ामोशी का एक हल्का सा सच का सामना है,,

आज रुबरूं हु अपने आपसे,, की ये ग़ालिब किसके लिए बना है,,
तू ही मेरे आईने का अक्स है,,बस इस चीज के लिए आज ये फन्ना है.....



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