Abhishek Maurya

Abhishek Maurya

Thursday, December 29, 2011

मिस जूलिया

मैं आज फिर से एक कहानी लेकर आया हूँ फिर वही कहीं आप के दिल को छूती हुई और  कुछ मेरे दिल को छूती हुई, आज की कहानी एक ऐसी लड़की पे है जिसको कभी अपने आपसे प्यार हुआ करता था, मगर उसको कभू उसको उसके जैसे चाहना वाला नहीं मिला, वो लोगों को खुश करने में लगी रहती थी, लोगों की हमेशा मदद कैसे करते हैं ये उस से अच्छा  शायद ही कोई जनता हो, मगर ये दुनिया भी कैसी हो गयी है, कोई नहीं समझता था उसकी भावनाए तो लोग ऐसे तोड़ते थे जैसे किसी कांच को तोड़ रहे हो, मगर कहते हैं अची नहीं जाती किसी के कुछ करने से, और वो हमेशा लगी रहती थी लोगों की किसी न किसी तरीके से मदद करने में......
                                 शायद हुआ भू लय भगवन ने उसको वहां पंहुचा दिया जहाँ उसकी जरुरत थी, उसकी पोस्टिंग आसाम के एक छोटे से गाँव हिलाई में हुई थी, दरअसल वो एक वनस्पति विज्ञानं की रेसेअर्चेर थी, इसीलिए उसे उन इलाको से अक्सर  जाना पड़ता था जहाँ उसे कुछ-न कुछ मिल जाये, वो हमेशा की तरह मस्त, खुद से खुश, दुसरो के लिए तत्पर, उसे वहां की जिंदगी बहुत अच्छी लगने लगी थी, उसको वहां की हरियाली से प्यार हो गया था,शायद उसको उसकी जन्नत मिल गयी थी,
                                    इतने में एक दिन उसके दरवाजे पे किसी की रोने की आवाज आई, उसने समय देखा तो रात के १ बज  रहे थे, इतनी रात को कौन रोता है, बड़ी खतरनाक सी आवाज, इतनी की किसी की आंखें नींद से ना खुले ऐसा नहीं हो सकता था, उसने अपनी आँख खोली,,हिमत बने , टोर्च ढूंडा, और चल पड़ी दरवाजा खोलने के लिए, दरवाजा  जब उसने खोला, तो दखा, की सामने कुछ नहीं था, उसने दरवाजा फिर बंद कर दिया, फिर से वाही रोने सी आवाज आई, उसने फिर दरवाजा खोला, तब देखा की उसके night सुइते को कोई निचे से खीच रहा है, उसने देखा तो हैरान, डर गयी की ये कहाँ से आ गया, क्योंकि वो एक शेर का बचा था, पहले तो उसकी हिमत नहीं हुई, की एक शेर के बचे को उठाने की , मगर बाद में उसने हिमात दिखाई, और उसको उठा लिया, उस छोटे से बचे पर किसी ने हमला किय हुआ था, उसकी टांग  पे किसी ने कुछ मार रखा था की उसकी तंग पूरी तरह से खून से सनी हुई थी, ऐसा मार्मिक द्रह्स्य देखकर उसकी आँखें नम  हो गयी, उसने उसकी मरहम पट्टी की और किसी को नहीं बताया की उसके पास एक शेर का बचा है , क्योंकि हमारे समाज में सब कुछ स्वीकार कर सकते हैं मगर उसको नहीं जो आपको नुक्सान पहुचता  हो, और वैसे भी आज कल के लोगो को अपने दुःख सुख से ज्यादा परेशानी  के दुःख सुख से मतलब होने लगा है, उनको बिलकुल बर्दास्त नहीं होता है की आप कोई भी वैसा काम करो जिस से की उनको कोई नुक्सान  हो,और ये तो शर का बचा था,
                    आज के ज़माने में आदमी अपने बारे में ज्यादा सोचता है ,  और अपने लिए वो किसी भी को मार सकता  है, और वो लोग बिलकुल भी शेर के बेचारे बचे  को जिन्दा नहीं छोड़ते, , इसी के डर से मिस जूलिया ने किसी को कुछ नहीं बताया, चुप चाप उसको पालने लगी,बिलकुल  जैसे की उसकी माँ हो,उसको सुबह दूध देना, उसको बिलकुल वाही खाना खिलाना जो वो खुद खाती थी, ऐसे तैसे चलता रहा, जैसे की उसकी सुनी दुनिया फिर से एक बचे के आने के बाद आबाद हो गयी है, :

क्या चेहरा है उस जन्नत के मासूमो  का,
की दुनिया में जितना हो मारामारी,
एक चहरा झलक दिखा दे वो,
की मुस्कान चेहरे पे  आ जाये खुद,,
की मुझको भी दे वो हस्त हुआ चेहरा एक बार फिर,
की मैं भी इस दुनिया में जी लूँ एक बार जन्नत फिर....

देखते देखते वो बड़ा हो गया था,  मिस जूलिया ने कभी भी मॉस को हाथ नहीं लगाया था, मगर अपने बचे जैसे को शेर को खिलाने  के लिए, उसने मॉस ख़रीदा और खिलाया अपने  बचे को,हाँ अब हम उस शेर के बचे को मिस जूलिया का बचा कह सकते है, कहें भी क्यों न कहे, वो जी भी  तो रही थी एक माँ-बचे की तरह, भगवन करे किसी को उसकी नज़र न लगे, कौन कहता है की मात्र्तव हमेशा इंसान के बचों पर ही झलकता हैं , आज मिस जूलिया  ने ये साबित  कर दिया था की वो एक असली माँ थी, मगर कहते नहीं की जैसे जैसे इंसान बड़े होते हैं उसकी खबर भी दुनिया को पता चल जाती हैक बिलकुल हुआ भी वैसे , लोगो को एकसास हुआ की मिस जूलिया कुछ छुपाती है, वो एक स्त्री जिसने कभी मॉस खाया नहीं वो अब मॉस लेने लगी है, लोगों ने जब मिस जूलिया से पूछा, तो मिस जूलिया ने पहले तो मन  किया, मगर बाद में मान गयी की हाँ मैंने शेर के बचे को पाला है, वो बिलकुल इंसान जैसा हैं , मगर पड़ोसियों को इसकी कहाँ फड़क पड़ता हैं , उनको तो बस अपनी लगी थी,
                         आज तो हद्द हो गयी किसी ने forest officer को बुलवा लिया था, आज मिस जूलिया परेशां थी, फोरेस्ट ऑफिसर बिलकुल नहीं मान रहा था, और वो शेर के बचे को ले गया, मिस जूलिया आज अपने बचे को बचाने के लिए कुछ नहीं कर पाई , आज इस समाज ने उसकी माँ की भावना को सूली पर चदते  हुए फिर से साबित कर दिया की समाज की सोच सोचउन्ही  रूधि  वधिता  पे चली जा रही है जहाँ किसी की भावना को तो यहाँ रोज एक बाज़ार में बेचा जाता है और रोज ख़रीदा जाता है,समाज सिर्फ नाम का समाज रह रहा है, आज के jamane  में वही जीत सकता है जो समाज से लड़ाई कर सके , और इसको जो बदलने आये वो या तो dhumil  हो गए धुल की तरह या कहीं दब गए किसी की लाश की तरह जिसको धरती की गोद में सुला दिया गया है,,,,
                               जब शेर के बचे ने,,अरे नहीं मिस जूलिया के बचे ने, जब सब कुछ खाना छोड़ दिया, तब फोरस्ट ऑफिसर से रहा नहीं गया, उसने कहा हम आप की एक परीक्षा लेंगे अगर शेर के सामने हमने खून दिखाया और इसने अगर कुछ भी किया, तब हम इसको जंगले में ऐसे जगह छोड़ देंगे की ये वहां से लौट नहीं आ पायेगा,अगर वो खाना खता भी नहीं है तो बाकि जानवर इसको मार देंगे, ऐसी परीक्षा!!!, अगर शेर के सामने खून से लटपट मॉस रख दो और वो खाए न, ऐसे कैसे हो सकता है, फोरेस्ट ओफ्फिसेर पूरी तरह से जितने की ख़ुशी में तैयार, मगर मिस जूलिया ने उसकी शर्त को मान लिया, उसने कहाँ ठीक है, आज मैं इस परीक्षा  की तैयरी के लिए भी तैयार हुईं,
                                   अगले दिन सब लोग इस मंजर को देखने के लिए तैयार, मिस जूलिया को अपने मात्र्तव की भावना पे तैयार थी, उसने तो हमेशा उसको वही सलाह दी जो उसके  लिए हमेशा अछी रही, आज माँ-बचे की परीक्षा की घडी  है, उसने बस शेर के कान में कुछ कहा, और बस फोरेस्ट ऑफिसर से कह दिया की आप  अपना काम करे, फोरस्ट ऑफिसर ने भी एक बिलकुल ताजा परिंदे को मार के लाये थे, और वो शेर के सामने रख दिया, शेर भी गया, फोरेस्ट ऑफिसर भी बड़ा खुश उसको पता नहीं मिस जूलिया से कैसी दुश्मनी हो गयी थी, वो अन्दर ही अन्दर खुश होता जा रहा था, शेर जैसे जैसे आगे बड रहा था, लोगों की नज़र बस उसकी की ओरे थी, मगर जैसे ही शेर  ने उसको शुन्घा , कुछ लोगों में ख़ुशी का माहौल और कुछ लोग थोड़े से हताश, की अब क्या होगा, आज हताश लोगों को देख के लग रहा था की अभी भी कुछ लोगों में माँ की भावना है,
               शेर ने सुंघा उस मरे हुए परिंदे को, खून से लटपट परिंदे को, और उसको उठाया ओने मुह से, फिर लौटा , ऑफिसर तो ख़ुशी के मारे हस रहा था, और बस कह दिया की मैं जीत गया, मगर बिलकुल उसिन वक़्त वो शेर का बचे ने, नहीं मिस जूलिया के बचे ने उस परिंदे को मिस जूलिया के पैर में दाल दिया, और फिर घर के अन्दर चला गया, लोगों के अन्दर ख़ुशी,मगर  उस दिन मिस जूलिया की ख़ुशी इतनी थी वो चेहरे से हसीं नहीं मगर वो ऑफिसर के पास आकार बोली, अभी भी जानवर में इंसानियत जिन्दा है , उनके अन्दर भी माँ की वेदना का ख्याल है, जरा आप लोग तो नम्र हो.....आज मिस जूलिया ने साबित कर दिया था, की माँ का मातृत्व कुछ भी हासिल कर सकता है, बस एक बार माँ का मातृत्व दिखाए तो कोई,,,,कुछ लोगों ने हैरानियत  से पूछा की आपने  उसके कान में क्या कहा था, तो उसने बस ये जवाब  जवाब, मैंने तो बस उसे कहा  की बचपन बचपनसे मैंने तुमको बल उठाना सिखाया था और तुम बल मेरे पास ले आते थे  था, वही करना  और उसने बस वही किया, और बचपन की तरह बाल मेरे पास ले आया  , और खाने  के लिए अन्दर चला गया, बच्चा  भूखा है, , बस खाने की जल्दी में  अन्दर चला गया है, कई दिनों दिनोंखाना खाया नहीं है, आज मैं उसको अपने हाथों  से खिलौंगी ......
                              और यहीं ख़तम होती है कहानी  मिस जूलिया की,,,,

तुम सब कुछ हासिल कर सकती हो,
तुम किसी में भी जान दाल सकती हो,,
हे माँ तुम क्या से क्या कर सकती हो,,
साया न हटाना मुझ पर से कभी,,
शायद जान जो तुने दी है मुझको कभी,,
शायद अकेला न जी पाऊं उसको साथ में लेकर कभी....

Sunday, December 25, 2011

साक्षी की sorry....

मैं कहानियों का कोई सौदागर नहीं हूँ, जो आया और कुछ न कुछ लिख के चला गया, मैं तो बस आप के दिल की वो बात पड़ता हूँ, जो कभी-कभी आप किसी से कहते नहीं है,, मगर हमेशा से उसी बात को लेकर सोचते रहते है,, मेरी आज की भी कहानी उसी एक लड़की पर है जो हमेशा अपने दिल की बातें किसी को बताया नहीं करती थी और जिसको वजह से उसे क्या-क्या खोना पड़ा शायद ये उसको भी पता नहीं था,उसकी जिद्द ने उस से क्या क्या ले लिया, ये उसको तब एहसास हुआ जब वो उसके साथ न था....
                                        ये मेरी कल्पना की उमंग " साक्षी" की कहानी है, जो हमेशा अपने काम में मस्त, किसी से ज्यादा बातें नहीं करना, सड़क पे दायें-बायें नहीं देखना, एक रस्ते से आना और उसी रस्ते से वापस जाना था, उसका बस यही एक काम रह गया था, जिंदगी क्या होती है, इस से साक्षी को कोई मतलब नहीं था,, उसका तो बस ये मानना था की जिंदगी बस काम करने के लिए बने गयी है..मगर शायद वो ये नहीं जानती थी की भगवन हर इंसान को एक बार जिंदगी जीने का मौका जरुर देते है, और उसी की जिंदगी में भी वही एक ऐसा मौका आया जिसका शायद उसको नहीं, मगर उसकी जिंदगी को इन्तेजार था,
                            राह में चलते हुए, उसकी किसी से मुलाक़ात हुई, हाँ वो थोडा बदतमीज था, चस्मा हाथ में घुमाते हुए, मोबाइल की एअर्फोने अपने कान में लगाये हुए, न दुनिया की सोच , न किसी की सोच, बस अपने में लगा हुआ, वैसे भी आजकल दुनिया की सोच रखता कौन है,,और जब से मोबाइल फ़ोन का अविष्कार हो गया है , तब तप पुचो मत, लोगों के कानो से ऐसे चिपका रहता है जैसे लड़कियों के कानो से बालियाँ,  दरअसल वो अपनी इसी चाल में साक्षी से टकरा गया था, और आप साक्षी को तो जानते ही है, वैसे शांत, मगर जब कोई ऐसी हरकत करतब, राम -राम.!!!
         साक्षी का मन तो ऐसा किया जैसे की एक चपत लगेये उसके गालों पर, मगर वो सीधी-साधी बच्ची, कैसे लगाती.....मगर वो बस वहां से चली गयी, लड़का तमीजदार था तभी तो उसने सॉरी बोला, मगर साक्षी तब तक जा चुकी थी, पहली बार साक्षी की जिंदगी में कभी ऐसा हुआ होगा की वो ऐसे किसी अजनबी से टकराई थी, रात भर उस लड़के को गाली देती रही, कहती रही की आजकल के लड़कों को कोई तमीज ही नहीं, न चलने का तरीका पता है, न बात करने का तरीका पता है,आखिर पता है की कान में इयेर्फोने कैसे लगाये जाते हैं, और बस सुनाती रही रात भर,
                  फिर सुबह हुई और साक्षी की ये सुबह हमेशा की तरह वाली सुबह नहीं थी, उसने सोच के रखा था की अगर आज वो लड़का मिलता है तो वो आज उसको खूब खड़ी-खोटी सुनाएगी, ये तो मानना पड़ेगा की उस लड़के के आने से साक्षी के विचार बदल चुके थे, कहाँ की सीधी-सधी साक्षी , वो आज उस लड़के को सुनाने जा रही थी, और ऐसे लग रहा था की सारे भगवन शंक बजा रहे हो की अब युद्ध होने जा रहा है देखने आ जाओ, साक्षी बिलकुल तैयार , अपने शब्दों के बाण लेकर, और हुआ भी वाही, वो लड़का आया अपनी चाल में, वो ऐसे चल रहा था जैसे मानो Michael Jackson का बाप, जैसे ही साक्षी उस से  कुछ कहती की उसने साक्षी से सॉरी बोल दिया, ये सॉरी शब्द भी बड़ा अजीब है,  अच्छे खासे कट्टर  लोगों को मासूम बना देता हैं , और हुआ भी वैसा , साक्षी ने उस से कुछ नहीं बोला मानो उसके गुस्से का उबाल को किसी ने ठन्डे पानी से बुझा दिया हो, मगर साक्षी ने उस से कुछ नहीं बोला, और  हमेशा की तरह अपने रास्तें को चली गयी, मगर लड़के को अच्छा नहीं लगा,  वो रोज आता और साक्षी से सॉरी बोलता लेकिन , साक्षी थी की उस से कुछ नहीं कहती थी,,,
                                          ऐसा लगने लगा था की साक्षी को भी उसकी आदत पड़ने लगी थी, अब वो भी उस लड़के को खोजने लगी थी, और जब तक वो उस से सॉरी न बोल दे उसकी सुबह सुरु ही नहीं होती थी, एक बार साक्षी ने तो उस से गुस्से में  कह भी दिया की तुम जैसे लड़कों को मैं बहुत अच्छी  तरह से जानती हुईं , पहले सोरी फिर थैंक्यू फिर I like you फिर I love you, तुम लड़के न.....और बस शांत होकर चली गयी थी, मगर लड़का तो बस चुप्प.....
                उसने साक्षी से कुछ नहीं बोला मगर तब भी रोज उसे सॉरी कहता रहता था, और साक्षी कुछ नहीं बोलती  थी, ऐसे ही दिन गुजरते गए , और ये तो रोज के हालात बन गए  थे, लड़के का सॉरी बोलना  और साक्षी का चुप रहना , मगर मन ही मन साक्षी को ये सब  अच्छा  लगने लगा था,
                                             मगर एक दिन साक्षी को वो रास्ते में वो नहीं मिला, उसको बड़ा  अजीब लगा की वो लड़का आज क्यों नहीं आया है मेरे रस्ते में , आज उसने सॉरी नहीं बोला  आकार, कहीं उसको कुछ हुआ तो नहीं है, और इसी सोच में वो चलती रही, और परेशां रही, दरअसल साक्षी को उसकी आदत पद चुकी थी....
                     रोज उसको देखें की आदत, रोज उस से सॉरी सुनने की  आदत, रोज चुप रहने की आदत, रोज उसी रस्ते जाने की आदत, कभी-कभी  चुपी कुछ आपसे छीन  लेती है :


उनसे कुछ कहा न गया  मुझसे बेरुखी से भी कुछ,,,,
की आज तक खामोश बैठी हैं की कोई शब्द गलत न निकल जाये,,
और हम थे की सोचते रहे एक बात बस,,
की वो हमसे नाराज रहती है एक छोटी सी मुलाक़ात की बात पे बस....

एक महिना हो गया, की एक दम से साक्षी के दरवाजे पे खट-खट हुई,  कि साक्षी  ने दरवाजा खोला और देखा की एक लैटर आया है, साक्षी ने देखा खोल के, तो किसी रमेश का था ,वो किसी रमेश को नहीं जानती थी,  उसको कुछ समझ में नहीं आया, तो उसने पड़ना शुरू किया, उसमे लिखा था,:

मैं रमेश , शायद आप मेरा नाम नहीं जानती है, मगर मैं वो हुईं जो आप से गलती से टकराया था, और रोज माफ़ी मांगता रहता था, की मैं बस ये चाहता  था  की कोई भी मुझसे नाराज न हो, कोई भी  मेरी वजह से दुखी न हो, मैंने अपनी जिंदगी में बहुत गम देखे हैं , और मैं किसी से गलती से भी कोई  ऐसा काम नहीं करना चाहता की वो आपको तकलीफ  दे जाये,
                                     मैं बचपन से अनाथ था, लोगों ने मुझे ऐसी-ऐसी  गलियां सुनाई है  की  ये मैं ही जनता हुईं, कोई अनाथ कहता है, कोई  मजाक में ये पूछता था की ओये तेरे बाप का नाम क्या है, मैं इन तानो से नफरत करता था ,  मगर कुछ कहता नहीं था, उनकी बातों को अनसुना कर देता था, और मैंने पढाई  लिखी की, की मैं आज अपने पैडो पे काबिल खड़ा  हो सका हुईं, मगर आज भी वो गलियां मुझे याद आती है इसीलिए, मैं कानो में हमेशा एयेर्फोने लगा के रहता था, की अब मुझसे व् गलियां नहीं सुनी जाती, किसी ने कहा है की लोग तुमको तब कहना छोड़ देंगे जब तुम उनकी नहीं सुनो गे और ख़ुशी की तरह जिओगे, इसीलिए मैं हमेशा खुश रहने की कोशिश करता हुईं,मेरी भी जिंदगी  बिलकुल आपकी जैसी है, रोज अपने रास्तें से जाना , किसी से मतलब नहीं ,,मगर जब मैंने उस दिन आप को तकलीफ पहुचाई, तब मुझसे रहा नहीं गया, और आपसे माफ़ी मांगने आया, मगर आप मुझसे इतनी नाराज थी की आपने मुझे माफ नहीं किया,,
                            शायद इसीलिए भगवन मुझे इतनी बड़ी सजा दे रहा है, की इस अनाथ को अपना साया  दे रहा है, हाँ उस आखिरी दिन आप से माफ़ी मांगने के बाद जब मैं लौट रहा था, जैसे की मैं आपसे टकराया था वैसे किसी और से, मगर इस बार भी मेरी गलती नहीं थी, और इस बार उस गाड़ी वालें ने मुझको इश्वर से मिलवा दिया, , कहते हैं हर इन्सान की आखिरी इछा पूरी  की जाती है तो मैं आप से बस एक आखिरी इछा मांगना चाहता हुईं, की मुझे माफ़ कर दीजिये, मैं आपको उस दिन तकलीफ नहीं देना चाहता था, शायद जब तक ये ख़त आप तक पहुचे तब तक मैं इस दुनिया में न रहूँ  मगर मेरे माफ़ी जरुर रहेगी, तो इस बार मुझको इस दुनिया से आजाद कर दीजिये, और मुझे माफ़ कर दीजिये,
                                        रमेश का ख़त ख़तम हो चूका था, साक्षी आज फिर बाहर निकली , उन्ही गलियों में गयी, जहाँ वो रोज जाया करती थी, जहाँ वोरोज किसी  की माफ़ी सुनने को बेकरार रहा करती थी, आज उसकी अन्खोने में  आंसू थे, और वो उस अजनबी के लिए थे जीको साक्षी कभी जानती भी नहीं थी, और आज उसके आसूं   देख के, भगवन से भी शायद रहा न गया, और उसने भी अपने आंसूं  झलका दिए, साक्षी आज भीग रही थी, और आंसूं उसके आँखों से निकले जा रहे थे, और बस एक बात कही जा रही थी, की मैंने तुमको माफ़ कर दिया , मगर आज मुझे कौन माफ़ करेगा, ,,

किसी की दिल से इतना न खेलो ऐ- तस्लीम,
की पहले उसको तेरे से प्यार हो जाये,
फिर जब तू उसको इनकार करे,
तो उसका शारीर उसका न रह जाये....


Thursday, December 22, 2011

एक छोटी सी कहानी : सलिखा

मैं कोई सच्ची कहने तो नहीं कहने जा रहा, लेकिन मैं अपने आसपास की एक कहानी सुनना चाहता हुईं,,जो कभी न कभी आप लोगो ने भी जी होगी , आज वो  चुप- चाप सोच के ऑटो में बैठी थी की वो आज माँ से नहीं लड़ेगी, और उसने आज पूरा मन बना लिया था की वो आज कुछ भी हो जाये नहीं लड़ेगी, वैसे कल्पना करना बहुत मुश्किल होता है,मगर उसने यहाँ तक कह दिया, की अगर बिजली भी मेरे ऊपर गिर जाये या आसमान भी फट जाये, मगर तब भी मैं आज माँ से नहीं लड़ेगी, मगर होता क्या है, ये तो भगवन को ही मंजूर है,,
                                          सच कहा है किसी ने, की सब कुछ बदल सकता है मगर व्यव्हार इतना जल्दी बदलना बहुत मुश्किल, कोई नहीं जो होना था वो हुआ, आज वो माँ के साथ बहार निकली और हुआ भी क्या, वो बाज़ार तक चली भी गयी और लड़ाई बिलकुल भी नहीं हुई, वो बहुत खुश थी कि चलो आज बच गये, आज का खुद से किया हुआ वादा तो पूरा किया.....
                             इंसान तब भले ही न ज्यादा खुश हो की जब वो किसी से किया हुआ वादा पूरा करता है वो तब ज्यादा खुश होया है जब वो अपने से किया हुआ वादा पूरा निभाता है,,:

नाराज तब  वो नहीं होते जब उनकी सीरत पे सब मरते हैं,,
नाराज तो वो तब होते है,जब वो अपने को आईने में देखते है..

आज हुआ भी क्या, माँ से लड़ाई नहीं किया, ख़ुशी के मारे खुश, मगर भगवन को भी ज्यादा ख़ुशी बिलकुल नहीं पसंद थी, कहते हैं ज्यादा खुश नहीं होना चाहिए किसी न किसी की नज़र लग जाती है, तो बस, सुरु होने जा रहा था महायुद्ध. किसी की बात पे नहीं, बस माँ ने खाना पसंद का नहीं बनाया था. लो बस सुरु हो गयी अर्जुन की बाड़ों के प्रहार और भीष्म पितामह के वक्ष में घुश्ते हुए बांड...
                                                         मगर यहाँ बेटी ही हमेशा भिष पितामह बनाने को तैयार रहती थी, मगर हमेशा वो अपनी संस्कृति को सँभालते हुए, माँ को मनाने जाती थी.. किसी ने सच कहा है, एक उम्र लग जाये इस रिश्तें को समझने  में, माँ बेटी का रिश्ता भी बड़ा अजीब है, जो आँखों से बातें पढ़ लेता है,  और बेटी का मनाना  हाय- हाय, किसी की नज़र न लग जाये, बेटी का मनाना और माँ का मानना, औए दोनों का एक साथ बने हुए खाने को खाना, और फिर माँ का खुद से कहना, कि चल बेटी मैं तेरे लिए खुद से कुछ तेरी पसंद का बना देती हूँ..
                  वैसे सोचा जाये , तो ये बात अगर पहले हो जाती तो महायुद्ध होता ही क्यों, मगर इतना खुबसूरत पल कैसे कोई छोड़ सकता है, माँ-बेटी का रिश्ता मुझे तो लगता है की सिर्फ माँ-बेटी ही समझ सकती है, क्योंकि उनके अलावा उनके रिश्तें की एक पतली मगर दुनिया की सबसे मजबूत डोर कोई नहीं बांध सकता है....
                                     अरे इस चक्कर में मैं बेटी का नाम तो बताना ही भूल गया, उसका नाम " सलिखा " था, और वो पुरे अपने नाम पे गयी थी, व्यहवहार कैसे करते है और कैसे किये जाते है, ये दूर तक उसके रिश्तें वालों को पता था, ऐसी बेटी पाने के लिए तो ज़माना तरसता था, सब उसके गुण गया करते थे, मगर उसी के घर वाले ऐसे थे की कोई देखता भी नहीं था, मगर उसको भी दुनिया वालों से कोई मतलब नहीं होता था, वो तो बस अपनी धुन में लगी रहती थी, अपनी माँ के बाल बनाना , उनके कपडे धोना, उनके खाना बनाते वक़्त मदद करना, उनके वो सरे काम जो वो खुद कर सकती थी वो सारे करती थी, और वो भी ख़ुशी-ख़ुशी, किसी को उसको कहने की कोई जरुरत ही नहीं पड़ती थी,
                                             इतने में पीछे से एक आवाज आई, वो आज ऐसी बेरंग थी की शायद कोई आदमी भी  इतनी बुरी आवाज से किसी जानवर को भी नहीं कहता था, और वो ऐसे खाने की प्लेट ऐसे फेक के जा रही  है, जैसे किसी कुत्ते को खाना दे rahi हो, मगर क्या जमाना भी आ गया है, पागलखाने में पागलों से कैसे बात की जाती है, ये उस नर्स को क्या पता, हाँ सलिखा पागल थी, और  हो भी क्यों न हो उसे अपनी माँ से इतना प्यार जो था.....
             उसकी माँ  एक कार एक्सिडेंट में उस से रूठ के चली गयी थी और आज तक वापस नहीं आई थी, वो आज भी माँ से बातें किया करती है, लड़ाई जैसे वो रोज किया करती थी आज भी करती है, बस कुछ नयी तहजीब  उसके अन्दर आ गयी है,, वो अपनी माँ का हर वक़्त ख्याल रखने की कोशिश करती है, उनके बाल बनाती  है, उनके कपडे धोती है, उनके सारे काम करती है,,,,
                                                 क्योंकि वो चाहती है की उसकी माँ आ जाये, और फिर से वाही लड़ाई करे जो पहले किया करती थी, उसकी माँ आ जाये और उसके लिए फिर वाही खाना बनाये जो उसके लिए कभी बनाया करती थी, पागल है न, क्या करें ,, बस थोडा प्यार चाहती है माँ का एक बार फिर......
बस थोडा प्यार चाहती है माँ का एक बार फिर......

वो दर्द सिने में छुपा के रखा है कैसे बताऊँ मैं माँ,,,
कोई नहीं है समझने वालों इसीलिए चुपचाप बैठा हुई हूँ  मैं माँ,,
अँधेरा है चारो ओर, कोई नहीं हैं सुनने वाला,,
एक बार आओं माँ, बहुत बातें करनी है,,
फिर से वही चोर-सिपाही खेलना है,फिर से  वही चिरिया उढ़ खेलना है,,
आज फिर से तेरी गोद में हमेशा के लिए सोना है,,,
आज फिर से तेरी गोद में हमेशा के लिए सोना है.......


Wednesday, December 21, 2011

teri yaadein....

मैं आज रोना नहीं चाहता, फिर क्यों ये आसूं निकलते हैं,,
मैं आज तुझको याद नहीं करना चाहता, फिर क्यों ये तुझको याद करते हैं,,
मैं आज हसना नहीं चाहता, फिर तेरी यादें मुझको क्यों हसाती हैं,
मैं आज तुझसे दूर नहीं होना चाहता,,फिर क्यों तू मुझसे दूर जाती है...


मैं आज ख़ामोशी में जीना नहीं चाहता, फिर क्यों तेरी तन्हाई मुझको ख़ामोशी दे जाती है,,
मैं आज तरपना नहीं चाहता, फिर क्यों तू मुझको तरपती है,,
मैं आज आइना नहीं देखना चाहता, फिर क्यों तू मुझे आइना देखने को मजबूर करती है,,
मैं आज सोना नहीं चाहता, फिर क्यों तू मुझे सोने को मजबूर करती है,,


मैं आज तेरे बिना जीना  चाहता हुईं,,फिर क्यों वापस जिंदगी में आते हो,,
अब जीना मैंने सिख लिया,, फिर क्यों इस जिंदगी को दोबारा वही बनाते हो,,


तेरे दिल के कोने में मैंने कुछ आज तक नहीं देखा,,तब भी एक यकीन से कहता हुईं,,
की उस दिल में आज भी एक कोने में मेरा अक्स आज तक रहता हैं,,
जो तुझको भूलने नहीं देता मेरी वहीँ यादें,,
आज जब भी देखती है तू आईने में अपना अक्स,,
तुझको तू नहीं,,किसी और का चेहरा है दीखता,,जो मिलता हुबहू किसी अपने के जैसा,,
मैं ये नहीं कहता की वो अक्स मेरा हो सकता है,,मगर जरा ध्यान से देख,,
कहीं उसका नज्र मुझसे तो नहीं मिलता,
कहीं उसका नज्र मुझसे तो नहीं मिलता,....


(to be continued..)



Tuesday, December 20, 2011

ख़ामोशी.....

ख़ामोशी भी क्या पन्हा है,,जीने की भी इसको एक कला है,,
न जाने क्या किस मोड़ पे कह जाये,,बस इसको ये आता है ये फ़ना है..


मेरे पास पड़ी किताब की सोलवां पन्ना खुला है,,
माचिस की आधी तिल्ली का आज अपना एक नया अंदाज है,,
दीवारों के कान सुने थे हमने,,,वो भी आज कुछ सुनना चाहते हैं,,
दरवाजे की खटखटाहट होने से पहले कुछ बुदबुदा रही है,,
आज सबके अपने नए अंदाज है,,ये क्या किसी के आने की साजिश को राँझा रहे हैं,,
या ये आज फिर मुझको मेरे हिसाब से सल्फों की रहनुमा जिंदगी जिया रहे हैं......


तू दूर है,,या पास है, आज लगता है सिर्फ इसको ही पता है,,
तेरा नाम ख़ामोशी है,,ये तो मुझको पता है,,
फिर क्या ताक़त है तेरे अन्दर,जो तेरे आने से सब ही आज मेरे से रहनुमा है,,
तुने क्या जादू किया है,,की आसमान से आज चांदनी भी खफा है,,
न जाने क्यों तुझको आज अपना हमसफ़र बनाने की इल्तेजा है,,,
तुने आज पड़े हुए खामोश मजबुओं को आज फिर से एक साथ बुना है,,


न जाने खन-खन के किसी की पायल की आवाज की अलग सी बेला है,,
पंछियों की खुबसूरत फरफराहट की आज अलग सी खेला है,,
इस मौसम में इनके न होने से भी तुझमे क्या फन्ना है,,
की आज तू इन सबको भी जिस्मे- आज्बाँ करके मेरे सामने आज चुपचाप खड़ा है,,
तेर्रे जाने से ये जिंदगी रौनक तो नहीं होती,न आने से इसमें कोई फर्क पड़ता है,,
आज तू क्या है मेरी जिंदगी के लिए, ये आज बस नूरे- जज्बात हुआ है...


ये जिंदगी कुछ नहीं है तेरे बिना,,आज जिंदगी को गले लगा ले,,,
ऐ ख़ामोशी आज आ जा मिल के जिले उस जिंदगी को,,
क्योंकि अब तो हर ख़ुशी और गम में तुने ही मुझको छना है,,
जिंदगी खुश भी है तेरे साथ,,आज बदरंग भी है तेरे साथ,,
इसमें भी आज तेरा और मेरा अलग सा एक फन्ना है,,
किसी आईने को देख के मैंने तुझको अपना अक्स माना,,
ये ही बस मेरी एक दिल की सची ख़ामोशी का एक हल्का सा सच का सामना है,,

आज रुबरूं हु अपने आपसे,, की ये ग़ालिब किसके लिए बना है,,
तू ही मेरे आईने का अक्स है,,बस इस चीज के लिए आज ये फन्ना है.....



Saturday, December 10, 2011

Kaasshh...

काश तुम मेरी आँखों को पड़ लिया करती,
तो शायद तुम मेरे साथ होती,,

काश तुमने मेरी मंजिल को अपनी आँखों से देखा होता ,
तो शायद तुम कुछ दूर और मेरे साथ चल दी होती,,

ख्वाईशें मेरे दिल की अपने लिए देख ली होती,,
तो शायद तुम्हारी सोच बदल गयी होती,,

काश तुमने समुन्दर की गहराई जान ली होती,,
तो शायद तुम मेरे इश्क की इन्तहा समझ चुकी होती,,

काश तुमने आकाश को बड़े प्यार से देखा होता,,
तो कितना करता हूँ प्यार मैं तुझको, ये तुम समझ चुकी होती,,

कभी नंगे पैर मेरे साथ समुन्दर की लहर की ओर भागी तो होती,,
तो मेरे साथ रहने का क्या फर्क है,,,ये तुम समझ चुकी होती,,

काश मेरे दिल की बातें तेरे दिल को भेद जाती,,
तब मेरे अश्कों की बातें तुम समझ चुकी होती,,

काश तुम मेरे सपनो को सही से देख पाती,
मैं तुम्हारे सपनो में क्यों हूँ ,,ये तुम समझ चुकी होती,,

काश मेरी तरह जरा होता खुद पर भरोसा,,
तो शायद आज तुम मेरे साथ होती,,


काश तुम मेरी आँखों को पड़ लिया करती,
तो शायद तुम मेरे साथ होती !!

(to be continued...)







Tuesday, December 6, 2011

Beauty Of Love ...

How can we judge that love is in the purest form or not? It is never judged by anyone in this world because it is the feeling of the heart and soul. And yet any machine is not discovered to judge the extremicity of love. then how can we say that love reflects the beauty of true happiness and self satisfaction desire. 
                             If a girl denied to the boy, when a boy proposed her , Then why are they doing following things :
1- When a boy had fever and something else, then why in every single hour they asked, "Do you take the medicine ?". even the doctor prescribed only thrice in the day but that girl pushed them to take the medicine in every hour of the day. This is not in the limit of the girls, if they want then they gave injections to that boy in every single hour. If a boy denied to the girl that he doesn't want to go to clinic, then they literally are crying and ask  to go to clinic with her. Now इ considered, this case may be the friendship case.
2- If girl doesn't care for them then why they asked at every meal time that ,Khana khaya ki nahin,,,and by chance if boy doesn't take the meal then they asked, Kyon nahin khaya, abhi khaho jakar!!!. these are the statements which no one has a capability to define that what may be relationship? Now again I considered, this case also may be the friendship case.But, 
3- If a girl's friend keep talking to that guy then why they are saying that," Jao usi se bat karo jakar; Time mil gaya bat karne ka." Then why are they jealous?? I suppose that this may be not the case of friendship only. This show the possessive nature of a girl with that guy whom they doesn't want to share with anyone. And why they don't understand that they are in love. 
                                If you doesn't agree that you are in love then please don't say these statements and don't realized others that you are caring for them.  Because sometimes they are confused that hopefully you like him. 
          I only agree with one statement that if you love him then say Yes otherwise directly said No and don't try to misconcept him that you like him but you don't love him. This is the famous line of a girl, that ' I like you but i don't love you!!.And this line may be the superfulous to hurt the feeling of a boy. If you don't know how to love then please don't try to learn how to break the heart. 
                      Realization is the first step of love so please realize your inner love towards others. Love can't be die, it is always be existed in your heart so please try to understand it. Hopefully, your perfect one may be infront of you but you don't realize him and if he will go out from your life then he will never be back so don't let him go from your life. Realize it, Accept it and then lived happily..


Monday, December 5, 2011

The Magic Moments of Childhood...

Today, I got hungry so i bought a small packet of Crax, and enjoyed it. At last I found the puzzle game and a small train car in which I have to join all the wheels and train parts and its engines. And I enjoyed both games and placed it in front of my table and As I see both the games I feel happy and I don't know why....
                              When I told about this train to my sister in a great anxiety, then she told me you are behaving like a child, and then I felt that in this fast running life, we forget the most important thing in our life is : CHILDHOOD DAYS...
                                     Actually we bought only those products in which we got prizes or any gift items included mostly from the digital watches free with bournvita and boost, and badminton rackets with horlics and many prizes and we were so happy when our parents bought those items. They didn't buy those products because they are body tonics especially because of us that we want them. How much our parents cared for us??? And even if we forget those memory days but we don't forget the love of parents toward us and we saluted to their love in the great extreme manner that could not compare to any happiness in this world. I love you mammy and papa....
                                              Alongwith what is the difference between the childhood days and the present days? In childhood days, when we got the prizes or gifts, then we share to our friends and our relatives and that gift is the precious one for us, and we couldn't separate from them. And we used to sleep with them. It is a joke but in reality it took place with me. And I felt a huge happiness when I thought about those childhood days.
               But today when we got the prizes in this competitive world, then we don't share it with anyone because we generally improve our qualities like Jealousy, Eagerness, Ego, and many qualities. And because of these special qualities we are lacking in happiness and many satisfaction  and specially we are lacking to enjoy the real meaning of Life.
                                          It is truly said," A Child is the image of a God". Because the heart of the child is as clean as God' heart. And in this competitive world we are faliciously destroying ourselves.
                So at last, i feel that we should be enjoying the thing as children are enjoying because this time is not returned by anyone so enjoy the single moment of your life....
कहाँ थे , कैसे थे, क्यों थे, हम क्या हो गए....
जहाँ हसना था, जहाँ रोना था,,
ये बिना सोचे , हम क्या थे  और अब क्या हो गए.....



Friday, December 2, 2011

Self-Confessed love....

I wrote many times about love and really i want to say that now I am bored of talking about love and all. But what i think that love is the entire thing from childhood to the time when you are counting your last seconds, for which you began fight with all over the world. But is it really the meaning of love which can be whispers in the heart of others on whom you want to say? I don't know this is actually. Obviously, love is understood by the others but what do you do when it is not understand by that person whom you want to say!!!!
                                                 Actually, in the fast run of atmospheric love, everybody is confused about love. And in the meanwhile he/she is experimenting with the persons whom they meet. But sometimes the true love being passed by them and they never understood them. And then they said that they don't get their love. I believe that being a self-confessed lover. Don't hide your love. If you know that you are in love then say immediately your loved one that you loved him/her. And don't confused on the little point that either he/she denied or accepts.  Denial and Acceptance are the two kinds of love, but if you think more then you see that in both the types you win. Because when you say about your true love then you have an ability and you have a courage to say that you have strong feelings for her/him.
                             And you win because there are many persons in this world who never judged about themself that either they are in love or not, and you are the person who know about your innerself. And you have only the courage and power to say to this world that you loved her/him. So being a person who is proud to be a Lover. And love never dies, it remains keep in your little heart and always reminds you that you are honest to yourself and to live a pleasant life and simple life you first should win your heart and when you realized that you are made love then you actually win your soul and heart.
                                   And at last i inspired all those who are not in love, fall in love and enjoy the beautiful meaning of life and for those who are in love, hug your partner that he/she doesn't go away from you. Love your life and in the mean time I love my life ........