Abhishek Maurya

Abhishek Maurya

Thursday, July 29, 2010

TALASHH.....

आदमी तलाशता रहा,
मैं धुन्दता रहा,
कोई घूम रहा नदियों कि तलाश में,
कोई हसीं दुनिया कि तलाश में,
तलाश में तलाश हैं,
कैसी हैं ये तलाश,
और मैं धुन्दता रहा,
अपने प्यार कि तलाश में.....






किसी से पूछा तो बलोया कि यहाँ जाओ,
किसी से बोला तो कहा वहां जाओ,
न मिला कोई रास्ता मुझे,
बस प्यासी रह गयी मेरी तलाश.....






धुंडने गया वैश्या बाजार में,
मिले बहुत डगमगाते मुझे,
मैंने पूछा हैं मुझको अपने प्यार कि तलाश,
तो वो बोली कि चले जाओ यहाँ से,
क्योकि प्यार कि यहाँ कोई न हैं औकाद,
जो करता हैं प्यार वो कभी आता यहाँ आता नहीं,
कहती रही देर तक मुझे युहीं,
मैंने पूछा तू कैसे जानती हैं प्यार,
वो सिर्फ बोली और मुझे चुप कर गयी,
कि हुईं यहाँ सिर्फ,
अपने प्यार कि तलाश में.....






न मिला कोई रास्ता मुझको,
बस प्यासी रह गयी मेरी तलाश.....






पहुंचा मैं मंदिर में,
तो देखा वहां पे,
एक मूर्ति थी चुप-चाप सी,
उसको देखा तो लगा कि ,
पूरी हो गयी मेरी तलाश,
वो बेजबान मूर्ति बोली,
जो धुन्दता हैं है  तू,
हर जगह हैं,
वो तुझमे हैं खुद,
कर प्यार तू अपने आपसे,
यही इस दुनिया का समझौता हैं,
यही इस दुनिया का समझौता हैं....




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