क्या खोया मैंने क्या निज पाया,,
अक्सर खोने से ज्यादा मैंने कुछ न पाया,,
जो पाया भी मैंने,,
अक्सर उसके लिए लोगों की आँखों में आसूं छोड़ आया,,
आँखों की चमक को सिर्फ धूमिल करते हुए पाया।।
क्या खोया मैंने क्या निज पाया,,
अक्सर खोने से ज्यादा मैंने कुछ न पाया।।।।
उम्मीदों के सायें से,,नउम्मीदों की परछाई तक,,
मेरा अब रोज का मेल अनुभाया,,
गुमशुदगी में नाम मेरा,,
क्या चित्त क्या नाम मैंने है पाया,,
क्या खोया मैंने क्या निज पाया,,
अक्सर खोने से ज्यादा मैंने कुछ न पाया।।।।।
जीत के हार की विफलता को सहना,,
अब मैंने सीख गया हूँ,,
मैं केवल अकेला भ्रम के सागर से,,
और भ्रमित होना सीख गया हूँ,,
अँधेरा इतना और अँधेरा हो गया है,,
कि अब अँधेरे में भी मैं रहस्य का अनुमान लगाने बैठ गया हूँ,,
क्या खोया मैंने क्या निज पाया,,
अक्सर खोने से ज्यादा मैंने कुछ न पाया।।।।।।
जल बिन मछली,,मेघ बिन वृक्ष यही है मेरी काया ,,
शब्द बिन निशब्द अब ये है मेरी छाया,,
आधारविहीन ,,लक्ष्यवांछित ,, अब ये माया मैं बन के रह गया हूँ,,
अब अकल्पित स्वरों से बंध रही मेरे संगीत के सुर की एक नयी काया,,
अधरहिन् ,,सुरविहीन सा रह गया हूँ ,,,
क्या खोया मैंने क्या निज पाया,,
अक्सर खोने से ज्यादा मैंने कुछ न पाया।।।।।।
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