Abhishek Maurya

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Sunday, September 15, 2013

राजीव चौक.....

मुझे कभी-कभी कोई रोता हुआ दिखता है,,
तो कोई हँसता हुआ ,,
मैंने हर बार राजीव चौक पे लोगों को भागते हुए देखा है.।

कोई किसी का हाथ पकड़ रहा है,,
कोई किसी को छोड़ रहा है,,

कोई किसी को बुला रहा है,,
कोई किसी को आखिरी बार अलविदा कह रहा है,,

मैंने हर बार राजीव चौक पे लोगों को भागते हुए देखा है.।

कोई सीसीडी के सामने किसी का इन्तेजार कर रहा है,,
कोई सीसीडी के अन्दर कॉफ़ी के साथ इन्तेजार कर रहा है,,
अंतर कुछ भी नहीं,,इन्तेजार किसी का हो तो रहा है,,,
आँखें वही पलकें बिछाएं,,दोनों में कोई अंतर नहीं,,
निशब्द भाषा से किसी का इन्तेजार हो रहा है,,

मैंने हर बार राजीव चौक पे लोगों को भागते हुए देखा है.।

शायद कोई अपनी  परछाई से भाग रहा है,,
शायद कोई अपने गमो से भाग रहा है,,
शायद कोई अपनी तकलीफों से भाग रहा है,,
शायद कोई अपनी जिमेदारियों से भाग रहा है,,
पहुचना कोई नहीं चाहता कहीं भी कभी भी,,
दुनिया खुश नहीं रह सकती कहीं भी पहुच के कभी भी,,
खुश कोई नहीं होता कुछ पाने के बाद भी,,

मैंने हर बार राजीव चौक पे लोगों को भागते हुए देखा है.।

अंतर्मन'से'सब'रुकना'चाहते है,,
सब चुप चाप चलना चाहते है,,
जिंदगी की इस भागम भाग से सब बचना चाहते है,,
मगर किसी न किसी ठोकर से सब आगे बढ जाते है…

मैंने हर बार राजीव चौक पे लोगों को भागते हुए देखा है.।

कोई नया-नया दुनिया में कदम रखता है,,
कोई मेट्रो में पहली बार सफ़र करता है,,
दोनों में कोई अंतर नहीं,,
न जानने का दोष हमेशा उसी के सर पर मड़ता है,,
पैरों को कापतें भी देखा है,,
किसी को सहारा भी देते देखा है,,

मैंने हर बार राजीव चौक पे लोगों को भागते हुए देखा है.।
मैंने हर बार राजीव चौक पे लोगों को भागते हुए देखा है.।











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