Abhishek Maurya

Abhishek Maurya

Tuesday, March 20, 2012

मेरे अश्क...

मेरे अश्क यूँ नहीं बह रहे,,ये डर रहे है,
की जो हाथ थामा हुआ है तुमने बड़े प्यार से जो,,
वो कितने पलों के लिए किसी के दिल की धड़कन को चला रह है,,,


ये आज खुश है,,तुझे देख कर एक बार फिर,,,
महसूस करके भी,,जब तू इसके पास भी न है फिर भी,,
तुझे ही देख की क्यों मुस्कान कह रहे है,,


समझे न तू भी इसका इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है,,
ये तो बस अपने प्यार जो तुझसे कभी बयान नहीं कर पाए,,
उसको झलका रहे है है जैसे की इनको कभी न देख पाए तू कभी,,

होता है इनको भी दर्द वैसे,,कहते नहीं है तुझसे कभी,,
तेरी न को बार-बार सुन के,भी हाँ समझने की भूल किये जा रहे है,,,
मोहबत क्या है,,ये पागल नमकीन के पानी में क्या औकात जो समझे,,
समझते तो पल है,,जो महसूस करते है इनके दर्द को बड़े प्यार से ,,
झलकती है उनकी भी निगाहें,,की वो कुछ भी नहीं कर सकते,,
रोते है,,फिर हस्ते है,,और फिर वाही बात बार कह जा रहे है,,

जब जानते थे जवाब उनका ,,तो क्यों फिर उसके लिए ही बहे जा रहे  है,
जब जानते थे जवाब उनका,,तो क्यों फिर उसके लिए ही बहे  जा रहे  है..

रूह मेरी तेरे से कभी अलग न थी, ये हर सांस मेरी मेरे जज्बात बयां करते है,,
तू है दूर ,फिर भी,,तेरी हर साँसों का ये हर एक हिसाब किये जा रहे हैं,,


पहचाने तू इन्हें,,या न पहचाने कभी इनको,,
न जाने ये क्यों तुझको ही अपना सारा अवाम समझे जा रहे हैं,,


खुली किताब से है मेरे ये अश्क,फिर न जाने क्यों लोग इनको एक जाल समझते है,,
ये तो तेरी साँसों की धीमी-धीमी ख़ामोशी जाने गी,,की ये तुझसे कितना प्यार किये जा रहे है,


मैं हुईं तो तेरा एक आशिक,,,तेरे मना करने से मैंने कहना छोड़ दिया है,,
न जाने क्यों मेरे अश्क इस बात को न समझते है,,,
और न जाने क्यों तेरी तस्वीर देख के हर बार,
ये फिर से एक बार झलकते है,,ये जाने क्यों ये एक फिर से झलकते है,,


सब्र रखूँगा तेरे आने का अपनी जिंदगी में एक दिन,,
शायद मेरे अश्कों भी है,,,इन पर फक्र है एक दिन,,
की तू समझेगी,इनको,और संभाल लेगी अपने लबों से इन्हें,,,
की इनका अस्तित्व जिस समंदर को पाने के लिए चला था,,
करीब से आज वो पूरा हो गया,,आज  लक्ष्य  उनका है एक दिन...
पूरा हो गया लक्ष्य उनका एक दिन...

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