तुम न हो मेरे साथ तो आज कोई फर्क नहीं पड़ता,,
क्योंकि मैंने आज अपनी साँसों के बिना जीना सीख लिया...
धड़कन अलग हुई थी दिल से कभी,,दिल कभी तुझे भुला नहीं,,
समय का हक नहीं था शायद मुझ पर,,तभी तो आज मैंने जीना सीख लिया....
लोग उल्फत में भी जी लिया करते है,,ये मैंने किसी से सुना था,,
आज जब मैंने जाना ये क्या है,,तब पता चला की आज मैंने जीना सीख लिया....
किसी गरीब की अपनी कमाई को देखने की ख़ुशी,,कभी समझी नहीं थी शायद,,
जब समझा की कर्म क्या होता,और उसका फल क्या होता है,,
इसीलिए कह सकता हूँ ,,की आज मैंने जीना सीख लिया....
तेरे कदमो की आहटों को सुन-सुन के अपनी मंजिल को पाने के लिए चल रहा था,,
बिच में भटक गया,,फिर क्या-क्या सिख लिया,, फिर पता चला की आज मैंने जीना सीख लिया....
मैं तेरी जिंदगी का कोई खास पल तो नहीं,,या शायद कुछ भी नहीं,,
मगर जब देखना कोई फूल अपनी राहों में पड़ा हुआ तो,,
देख के उसको,, जान जाओगी की आज मैंने जीना सीख लिया....
जब छुना चाहोगी रौशनी की एक झलक तुम,,तो रौशनी तुमसे दूर भागेगी,,
जब जब पहुचोगी उसको छूने तुम उसको,,वो कहीं जिल्म्हिल हो जायेगी,,
तब तुम जानोगी,,,की क्या तुमने खोया और क्या मैंने है पाया,,
और तब तुमको एहसास होगा की आज मैंने जीना सीख लिया....
मैं वो को समंदर की रेत नहीं,,जिसको जब जब उठाओ और नया अकार दे दो तुम,,
मैं रेत होने से मना नहीं करता,,मैं रेत के एक कण हु ,,जो हमेशा आज़ाद रहना चाह्ता हु,,
तेरे आकार का कोई लोभी नहीं मैं,,क्योंकि आज मैंने जीना सीख लिया....
मैं था तेरी जिंदगी में एक शमा के समान,,जो जल के भी तुझको रौशनी दिया करता था,,
अब तो मं बुझ चूका हुईं,,शायद इसीलिए कोई पूछ नहीं है मेरी,,,
मैं फिर से शमा बन जाऊंगा,,क्योंकि आज मैंने जीना सीख लिया....
कभी है उम्मीद,, कभी है न-उम्मीद,,कभी है खोना,,कभी है पाना,,
मुहब्बत में लोगों को हस्ते बही देखा,,अक्सर रोते भी देखा,,
इन अब पहलुओं में गुज़र जाने के बाद आज जाना,,
की क्या मुहब्बत का असली है फ़साना,,
क्योंकि आज मैंने जीना सिख लिया,,
आज मैंने जीना सीख लिया....
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