Abhishek Maurya

Abhishek Maurya

Monday, July 8, 2013

सरहदे.........

सरहदे उनकी भी थी,, हमारी भी थी,,
कौन किसपे अब ऐतबार करे,,
देखते है हम एक दुसरे को,,
कहते है हम एक दुसरे को,,
कि देखने में हम तो है एक जैसे,,
फिर ये क्यों सरहदे हमारे बीच में,,
फर्ज की रेखा कितना मुर्ख बनाएगी,,

सरहदे उनकी भी थी,, हमारी भी थी,,
कौन किसपे अब ऐतबार करे।।।।।

होली हम यहाँ खेल रहे थे,,
बकरीद वो उधर मना रहे थे,,
दिवाली में पकोड़ियाँ हम यहाँ ताल रहे थे,,
तो ईद की सिवयाँ वो उधर भूंज रहे थे,,
मुंह में पानी उनको भी आ रहा था,,
यहाँ हम भी ललचा रहे थे,,
फिर ये क्यों सरहदे हमारे बीच में।।।

सरहदे उनकी भी थी,, हमारी भी थी,,
कौन किसपे अब ऐतबार करे।।।।।

खुद या भगवान ने तो ये  लकीरे नहीं बनायीं थी,,
फिर क्यों हमने बनायीं,,
भाई-भाई से अलग हो चूका है अब,,
देश-देश से अलग हो चूका है अब,,,
इंसानियत बची है अगर अब तो दिखा दो मुझको,,
दर्द सीने में है मुझको बुझा दो अब इसको,,,
ख्वाइशें मिलने की है अपने उस पार के भाई से,,
फिर ये क्यों सरहदे हमारे बीच में।।।

सरहदे उनकी भी थी,, हमारी भी थी,,
कौन किसपे अब ऐतबार करे।।।।।





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