मैं जिन आँखों से सबको तराशता हु,,
खूबसूरती से पलकों की छाँव से,,
क्या दुनिया में है कोई मुझको तराशने वाला,,
मुझको परखने वाला,,
मुझको समझने वाला,,
अब इन्तेजार की छाँव ढल चुकी है,,
परछाई अब शरीर से मिल चुकी है,,
ये रत अपनी खूबसूरती की एक झलक दिखा चुकी है,,
इन्तेजार की हर कसौटी अब बंध चुकी है,,
रस्ते अब थम चुके है,,
मिलन की बेला अब आई है,,
तेरी मुझे याद बहुत आई है....
मिलेंगे फिर बताय्नेगे,,की क्या क्या कमी छाई है,,
रोते थे हस्ते भी थे,,ये एक नयी धुन सी बनायीं है,,
प्यार हुआ ,,इकरार भी हुआ,ये भी एक काल्पनिक सी छवि बनायीं है,,
कोई तो हो मुझको तराशने वाला,,ये सोच के ये नयी कविता बनायीं है..
मैं जिन आँखों से सबको तराशता हु,,
खूबसूरती से पलकों की छाँव से,,
क्या दुनिया में है कोई मुझको तराशने वाला,,
मुझको परखने वाला,,
मुझको समझने वाला,,
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