क्यों किसी के ख्यालों जैसी नहीं बनती है ये जिंदगी,,
क्यों सोचता है कोई की वो कर नहीं पाया वो सब,,
जो की दूसरा कर चुका पहले से वही,,,
जिंदगी की लहरों में ,, समुद्र की गहराई में,,
हम कहाँ है,,क्यों है,,कैसे है,,
कभी तुम समझ पाए हो तुम अजनबी,,
इन उलझनों के जंजाल से क्यों नहीं निकल पा रहा हूँ मैं,,
आज बता दे मुझको ऐ अजनबी,,
क्या हो रहा है मेरे साथ ,,आज बता दे मुझको ऐ अजनबी,,,
आज बता दे मुझको ऐ अजनबी....
जिंदगी की नाव में खो रहा हुईं मैं,इस दिशाहीन समुद्र में,,
क्यों नहीं है लक्ष्य मेरा, ये क्यों सोचता हुईं,,बता दे मुझे ऐ अजनबी,,,
क्यों रोता हूँ,,,क्यों तड़पता हूँ,,क्यों बौखलाता हुईं,,बता दे मुझको ऐ अजनबी,,
क्यों एक कठपुतली के समान जी रहा हूँ मैं,,बता दे मुझको ऐ अजनबी,,
क्यों एक दिशाहीन पतंग की तरह उड़ता जा रहा हूँ मैं,,
क्यों साहिल बिना किनारे से मिल के जी रहा हूँ मैं,,
क्यों एक बूँद बिना सूखे को बुझाने के लिए बरस रहा हूँ मैं,,
आज बता दे मुझो ऐ अजनबी,,आज बता दे मुझे ऐ अजनबी,,,
सूरज की तरह लालिमा नहीं मैं,,जो भगा दूँ मैं इस अँधेरे को अपनी जिंदगी से,,
क्या कर रहा हुईं,,क्यों कर रहा हूँ,,इस उलझन से दूर कर दे मुझको ऐ अजनबी,,
जिसको था मुझपर भरोसा ..अज उसके अरमानो को कुचल के चल रहा हूँ मैं ऐ अजनबी,,
किसी के आँखों के सपनो को आंसुओं से बहा रहा हूँ मैं ऐ अजनबी,,
आज बता दे मुझको ऐ अजनबी,,की तू क्या चाहता है ऐ अजनबी,,,
तू क्या चाहता है ,,ऐ अजनबी,,,,,
किसको क्या बताऊँ ,,किसको अपनी उलझन समझाऊं ,,
किसको कहूँ की क्या दर्द है मेरा,,बता दे आज मुझको ऐ अजनबी,,
जो समझते हैं इस उलझन के साये को,,दर्द बड़े प्यार से,,
फिर वाही क्यों हस्ते है,,उन उलझनों और दर्द के साए को,,,
पूरी दुनिया के सामने मजाक बना बना के,,
आज बता दे मुझको ऐ अजनबी,,
की जिउं या मरुँ,इन परिस्थितियों के भ्रमजाल में,,
या फिर बन जाऊं दुनिया के लिए एक और अजनबी,,,
बता दे मुझको आज,,ऐ अजनबी,,
की बन जाऊं दुनिया के लिए एक और अजनबी,,,
बिलकुल तेरा ही प्रतिरूप,,,तेरे जैसा एक और अजनबी.....
क्यों सोचता है कोई की वो कर नहीं पाया वो सब,,
जो की दूसरा कर चुका पहले से वही,,,
जिंदगी की लहरों में ,, समुद्र की गहराई में,,
हम कहाँ है,,क्यों है,,कैसे है,,
कभी तुम समझ पाए हो तुम अजनबी,,
इन उलझनों के जंजाल से क्यों नहीं निकल पा रहा हूँ मैं,,
आज बता दे मुझको ऐ अजनबी,,
क्या हो रहा है मेरे साथ ,,आज बता दे मुझको ऐ अजनबी,,,
आज बता दे मुझको ऐ अजनबी....
जिंदगी की नाव में खो रहा हुईं मैं,इस दिशाहीन समुद्र में,,
क्यों नहीं है लक्ष्य मेरा, ये क्यों सोचता हुईं,,बता दे मुझे ऐ अजनबी,,,
क्यों रोता हूँ,,,क्यों तड़पता हूँ,,क्यों बौखलाता हुईं,,बता दे मुझको ऐ अजनबी,,
क्यों एक कठपुतली के समान जी रहा हूँ मैं,,बता दे मुझको ऐ अजनबी,,
क्यों एक दिशाहीन पतंग की तरह उड़ता जा रहा हूँ मैं,,
क्यों साहिल बिना किनारे से मिल के जी रहा हूँ मैं,,
क्यों एक बूँद बिना सूखे को बुझाने के लिए बरस रहा हूँ मैं,,
आज बता दे मुझो ऐ अजनबी,,आज बता दे मुझे ऐ अजनबी,,,
सूरज की तरह लालिमा नहीं मैं,,जो भगा दूँ मैं इस अँधेरे को अपनी जिंदगी से,,
क्या कर रहा हुईं,,क्यों कर रहा हूँ,,इस उलझन से दूर कर दे मुझको ऐ अजनबी,,
जिसको था मुझपर भरोसा ..अज उसके अरमानो को कुचल के चल रहा हूँ मैं ऐ अजनबी,,
किसी के आँखों के सपनो को आंसुओं से बहा रहा हूँ मैं ऐ अजनबी,,
आज बता दे मुझको ऐ अजनबी,,की तू क्या चाहता है ऐ अजनबी,,,
तू क्या चाहता है ,,ऐ अजनबी,,,,,
किसको क्या बताऊँ ,,किसको अपनी उलझन समझाऊं ,,
किसको कहूँ की क्या दर्द है मेरा,,बता दे आज मुझको ऐ अजनबी,,
जो समझते हैं इस उलझन के साये को,,दर्द बड़े प्यार से,,
फिर वाही क्यों हस्ते है,,उन उलझनों और दर्द के साए को,,,
पूरी दुनिया के सामने मजाक बना बना के,,
आज बता दे मुझको ऐ अजनबी,,
की जिउं या मरुँ,इन परिस्थितियों के भ्रमजाल में,,
या फिर बन जाऊं दुनिया के लिए एक और अजनबी,,,
बता दे मुझको आज,,ऐ अजनबी,,
की बन जाऊं दुनिया के लिए एक और अजनबी,,,
बिलकुल तेरा ही प्रतिरूप,,,तेरे जैसा एक और अजनबी.....
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