दिन कहता रात खुश है,,
तपन झेलेगा कोई मेरे जैसा ,,
तो जीना सिख जायेगा,,,
है मेरे से बड़ा कोई दुखी इस दुनिया में,,
क्या कोई मेरे जैसा जीना सीख पायेगा ...
रात कहती दिन कितना खुश है,,
इतनी ठंडक क्या कोई सह पायेगा,,
जो कद्र दिन को मिलती है,,
क्या कोई वही रुतबा मुझको दे पायेगा ,,
हु शालीन मैं ,,क्या यही दोष है मेरा ,,
है मेरे से बड़ा कोई दुखी इस दुनिया में,,
क्या कोई मेरे जैसा जीना सीख पायेगा ...
समंदर कहता मैं थक चूका हु ,,
भार सहते-सहते इस दुनिया का,,
दुनिया भर की नदियों से कह दो,,,
की अब दम नहीं बचा मुझे इतनी विपदा सहने का ,,
ग्लोबल वार्मिंग हो ,,या भूकंप के झटके,,
चाहे सुनामी हो या सैंडी के झटके,,,
सब मुझको झेलना पड़ता है,,
है मेरे से बड़ा कोई दुखी इस दुनिया में,,
क्या कोई मेरे जैसा जीना सीख पायेगा ...
नदियाँ कहती सभ्यताओं का निर्माण मुझसे हुआ है,,
मेरे बिना जीवन नहीं है,,
मैं थक चुकी हु चलते -चलते ,,
गंदिगियों को समर्जित -विसर्जित करते -करते,,
मेरी मृत्यु समंदर में ही निहित है,,
मेरा अस्तित्व विहीन प्राण है,,,
क्या जीना मेरा इतना ही बेकार है,,
है मेरे से बड़ा कोई दुखी इस दुनिया में,,
क्या कोई मेरे जैसा जीना सीख पायेगा ...
दुनिया के असंख्यों प्राणियों की यही एक भाषा है ,,
सब अपने ही अस्तित्व को विवेचित कर के ही बाधित है,,
इंसान हु ,,शायद इंसान से प्यार करने की ही भूल की है,,
किसी और के जैसे बनने में ,,खुद की इंसानियत को भूलते जा रहे हम,,
खुद की शक्शियत से शिकायत करते-करते,,,
इस दुनिया में किस लिए आये थे ,,भूलते जा रहे हम,,,
इस दुनिया की भीड़-भाड़ में खुद को धुंडते जा रहे हम,,
और हर समय एक ही लफ्ज कहते जा रहे हम,,,
है मेरे से बड़ा कोई दुखी इस दुनिया में,,
क्या कोई मेरे जैसा जीना सीख पायेगा ...
और अगर मेरे जैसा कोई जीना सिख पायेगा,,,
तो असलियत में जीना सिख जाएगा ,,
तो असलियत में जीना सिख जाएगा ....
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