Abhishek Maurya

Abhishek Maurya

Tuesday, December 29, 2020

सोचता हूँ ||

सोचता हूँ,
एक चिट्ठी लिखूं तुम्हे
भावनाओं से भरी
तुम्हे समझने की
अपने को समझाने की
लिखता तो बहुत है
लेकिन फिर फाड़ देता हूँ
शायद तुम समझोगी नहीं।

सोचता हूँ ,,

मैं रोज अपने काम में व्यस्त रहता हूँ
तुम्हे समय नहीं दे पाता
कहता कुछ और हूँ
समझ कुछ और होती है
बस यही लिख देता हूँ चिट्ठी में
लेकिन फिर फाड़ देता हूँ
शायद तुम समझोगी नहीं।।

सोचता हूँ ,,,

कोशिशें रिश्तों को सम्हालने की रोज करनी चाहिए
 महक फूलों में न भी हो एहसास होने चाहिए
किस कदर महफूज होते है दो शक्श
एक ही रिश्तें में
बस यही लिख देता हूँ चिट्ठी में
लेकिन फिर फाड़ देता हूँ
शायद तुम समझोगी नहीं।।


सोचता हूँ ,,,,सोचता हूँ ||



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