Abhishek Maurya

Abhishek Maurya

Tuesday, September 4, 2012

मेरे इख़्तियार में तू नहीं थी शायद ,,

मेरे इख़्तियार में तू नहीं थी शायद ,,
इसलिए तू कहीं अकेला चुपचाप  बैठा ह,,
रोजरोज सुनता हुईं तेरे ही बारे में कुछ,
सिर्फ सुन के ही तुझको महसूस करता हूँ।।।

हमेशा सोचता था,,की प्यार साचा हो तो सब कुछ मिल  है,,
मगर आज फिर से एहसास ,होता है,
कि कर्म मुझको फिर से मेरा अक्स मुझको मेरे ही आईने में दिखाता है।।।

खुदा से अमीन-ए-शाही का रुतबा माँगा था शायद,,
इसीलिए उसने मुझको तुझको छोड़ के सब मेरी किस्मत में लिखता है,,
राजी होंगी वो खुशकिस्मत हवाएं भी शायद,,
जो तुझको और मुझको  सहत कभी सोचता है ...

वक़्त की कसौटी में हम खड़े है शायद,,
इसीलिए हर समय गिरने का एहसास होता है,,
वक्र की दीवारों में कब तक रुतबा थए गा ,,,
एक न एक दिन उसको भी नुर्मैयाँ करना पड़ेगा,,

रंजिशों से कुछ नहीं मिलता ये सिख के आज ये गम होता है,,
वो गम शायद उसको भी हुआ होगा,,
जिसको छोड़ के कुछ समय पहले मैं अपने जुत्बो से कभी  निकला था,,

वजीफो की अशिकुई में बहुत मौशिकी देखि थी शायद मैंने,,
इसलिए किसी ने मुझको तुम जैसा समझ के दिखा।।।।


मेरे इख़्तियार में तू नहीं थी शायद ,,
इसलिए तू कहीं अकेला चुपचाप  बैठा ह,,
रोजरोज सुनता हुईं तेरे ही बारे में कुछ,
सिर्फ सुन के ही तुझको महसूस करता हूँ।।।