इन बारिश की बूंदों में,, एक परछाई तो दिखलाई देती है,,
जरा ध्यान से देखा,, तो ये बुँदे तेरे सायें को दिखलाती है,,
जब छुना चाह मैंने अपने इन हाथों से तुझको,,
तो वे वापस हाथ को स्पर्श कर के निकल जाती है,,
तो ये क्यों, वापस तेरे अक्स को दिखलाती हैं,,
तो ये क्यों, वापस तेरी याद दिलाती है,,
जब भूलना चाह था दिलोजान से मैंने तुझको,,
तो ये क्यों, वापस तेरे अक्स के अमृत से मुझको भिगाती है,,
तो ये क्यों, वापस तेरे मेरे साथ न होने का गम बार बार बताती है....
आज जब बारिश देखी, तो मैं जूठ नहीं कहता,,
हाँ मैंने तुझको याद किया था,,
वो पल जो तेरे साथ बीतें थे,,
हाँ मैंने उनको याद किया था,,
वो बारिश की बुँदे,, तेरा साथ होना,,
छुपने के लिए पेड़ के नीचे हमारा जाना,,
मेरे हाथ को बड़े प्यार से पकड़ना,,
हमारा और करीब आना,, और चुपके से कहना,,
की बारिश का बंद होना और हमारा घर जाना,,
मगर मन की बात का कुछ और सा होना,,
की कभी न ये ख़तम हो बारिश का होना,,
बस थम जाएँ ये पल जिसमे तेरा साथ होना,
और मेरा मुस्कुराना, तेरा खिलखिलाना...
और हमारा और करीब आना, और पलों को यादगार बनाना...
तो क्यों है ये दूरी, जो अब सही नहीं जाती अब हमारे मिलन से अधूरी,,
अब बस तेरा साथ होना, दुनिया को एक दूर होना,,
किसी से अब हमको न कोई सन्देश रखना,,
नज़रों में तेरा ही अक्स होना,, बस आईने में तेरी रूह का होना,,
कशिश अब बस तेरे छुने को होना,,
अंतर्मन से अब एक नए भावों का होना,,
की दुनिया का अब एक नए से सर्जन करना,,
की इसमें सिर्फ तेरे और मेरे जैसे प्यार का होना,,
न किसी की नफरत से हमको लेना,,
न किसी की जलन से हमको कोई फर्श होना,,
बस आज तो हमारा और तुम्हारा मिलन है होना..
बस आज तो हमारा और तुम्हारा मिलन हैं होना.....