Friday, December 4, 2015

रंजिशें

रंजिशें बहुत है दुनिया में,,
कुछ मेरे   परिवार में,,कुछ तुम्हारे ,,

सुलझाने  को बहुत से थे रास्ते,,
न मैं लेना चाहता,, न तुम लेना चाहते!!!

मतभेदों की दीवारे मन  में बहुत सी थी,,
दरारे न तुम भरना चाहते,, न मैं!!

सोचता हु ये छत मेरे घर की,,
बाहर की बलाओं से नहीं बचा पायेंगी ,,

जब अपनों की दुआएं,, बद्दुआओं में तब्दील होने लगे,,
क्या खाक़ किसी की इबादत काम आएगी !!

मैं रोता हुँ ,, कि  दर-दर  भटका हु बहुत कुछ पाने के लिए,,
घर में माँ का मंदिर था,, मेरा सर कभी वहां झुका क्यों नहीं??